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मेरी प्रिय भाषा हिंदी

मेरा गर्व मेरी भाषा 




हम सबकी पहचान है हिंदी, मीठी मधुरिम तान है हिंदी। 

हिमशिखरों से सिंधु-लहर तक, सारा हिंदुस्तान है हिंदी।। 

 कि हम सब का गव हिंदा है। किसी भी देश की भाषा उसकी सभ्यता, संस्कृति और उसकी उन्नति की पहचान होती है। भारत की भाषा हिंदी भी भारत की पहचान है। राष्ट्र को एकता के सूत्र में बाँधने वाली हमारी यह भाषा हमारे स्वाभिमान का प्रतीक है आजादी की लड़ाई में जड़ोँ इसने जन-चेतना को जगाने में योगदान दिया इसे अपनी भाषा के रूप में अपनाया आज़ादी की लड़ाई के समय कई लेख और भाषण इसी भाषा में उपे। क्रांतिकारी भली-भाति जानते थे कि यह जनमानस की भाषा है। 15 अगस्त, सन 1947 को भारत आज़ाद हुआ। भारत के विकास में हिंदी के योगदान और उसका लोकप्रियता को देखते हुए 14 सितंबर, सन 1949 को इसे राजभाषा का सम्मान दिया गया। हिंदी की ही हमारी राष्ट्रभाषा कहा जाता है। हिंदी में साहित्य का विशाल कोष है। आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक का इसका साहित्य हमें प्रभावित ही नहीं करता अपित हमारे मन के भावों को भी छूता है। हमम रची-बसी ओज से भरी हुई कविताएँ वीरता और देशप्रेम को दस्तक देती हैं। हिंदी को अपनी विशेषताओं के कारण जनसंख्या के आधार पर विश्व में दूसरा स्थान प्राप्त हो गया है। इसे विश्व की आधुनिकतम भाषाओं में से एक कहा जा सकता है, क्योंकि समय के अनुसार इसमें बदलाव आते रहे हैं। इसमें तकनाका शब्दावली भी विकसित हो गई है। इसी कारण विश्व के कई विश्वविद्यालयों में इसका पठन-पाठन होने है। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि हमारे लिए हिंदी गर्व करने का कारण है। लगा इतना सब होते हुए भी हमारे लिए दुर्भाग्य का विषय है कि राजभाषा हिंदी को उसका उचित स्थान व सम्मान प्राप्त नहीं हो पाया है। आज हम अंग्रेज़ी का प्रयोग कर स्वयं को अधिक श्रेष्ठ और ज्ञानी मानते हैं। इसके कई कारण हैं। एक कारण तो यह है कि हमारे भीतर दिखावे की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। साथ ही हम दूसरे देशों की सभ्यता और संस्कृति का अंधानुकरण करना अपना परम कर्तव्य समझने लगे हैं। हमारे देश का प्रतिनिधित्व करने वाले कई लोग अंग्रेज़ी का प्रयोग कर गर्व महसूस करने लगे हैं। हमारा इस प्रकार का व्यवहार भारत की सभ्यता, संस्कृति तथा हमारी राजभाषा हिंदी के नाम पर प्रश्नचिह्न लगा रहा है, जो उचित नहीं है। इस सबसे उबरने के लिए हमें इस दिखावे की मानसिकता से उबरना होगा और अपनी भाषा के प्रति गर्व भाव महसूस करना होगा। हमें अपने दैनिक जीवन में हिंदी का प्रयोग करना होगा। हमें यह सोचना होगा कि भारतीय सभ्यता के विकास में हिंदी का महत्वपूर्ण स्थान है। उसमें सरलता, सरसता और बोध गम्यता का भंडार भरा हुआ है। भारतीय होने के नाते हमें हिंदी को खुले मन से अपनाना होगा और गर्व से कहना होगा- हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तां हमारा। भारतेंदु हरिशचंद ने कहा है निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। यही हम सबका मूलमंत्र

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