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आज की भारतीय नारी






'समाज के विकास में महिलाओं का योगदान भी उतना ही है जितना पुरुषों का' कथन के आधार पर अपने विचार लिखिए।


प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक के भारतीय इतिहास को अगर हम देखें तो हमें पता चलता है कि भारतीय नारी अन्य राष्ट्रों की नारी के समान विलासिता की वस्तु बनकर नहीं रह गई है। भारतीय नारी भारतीय सभ्यता और संस्कृति की वाहक रही है। वैसे भी समाज के विकास में नारी के योगदान को कौन झुठला सकता है। जिस प्रकार तार के बिना सितार होता है, उसी प्रकार नारी के बिना नर का जीवन। नैदिक काल में नारियों का महत्वपूर्ण स्थान था, इसलिए कहा भी गया है : 

यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते, रमन्ते तत्र देवता।


अर्थात जहाँ नारी का सम्मान होता है, वहाँ देवताओं का वास होता है। वैदिक काल में नारी को सभी अधिकार प्राप्त थे। वह युद्ध-क्षेत्र में जा सकती थी। वह शास्त्रार्थ कर सकती थी और उसे अपना वर चुनने का भी पूरा अधिकार प्राप्त था, परंतु मध्यकाल तक आते-आते नारी की स्वतंत्रता पर अंकुश लग गया और बाल विवाह और सती प्रथा जैसी समाज को कलंकित करने वाली कुप्रथाओं का प्रचलन बढ़ा। मैथिलीशरण गुप्त ने नारी की इसी स्थिति का वर्णन करते हुए लिखा है: 

अबला जीवन हाय तेरी यही कहानी।


आँचल में है दूध और आँखों में पानी।। 


विश्व में शिक्षा का महत्व बढ़ने और अपनी पहचान बनाने की जिजीविषा ने आधुनिक नारी को नया रूप प्रदान किया। आज नारी ने यह प्रमाणित कर दिया है कि वह पुरुषों से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं है। वह पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। आज की नारी से कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं है। वह अध्यापिका, लेखिका, डॉक्टर, वकील, राजदूत, राज्यपाल, राष्ट्रपति का पद तो प्राप्त कर ही रही है, साथ ही प्रत्येक क्षेत्र में अपने देश, समाज और परिवार का प्रतिनिधित्व भी कर रही है। उसे अपनी पहचान मिल गई है और वह आत्मविश्वास से भरी हुई है। कहा जाता है कि एक लड़का पढ़ता है, तो केवल एक व्यक्ति शिक्षित होता है, परंतु एक लड़की शिक्षित होती है, तो पूरी पीढ़ी, पूरा समाज पढ़ता है। भारतीय नारी ने शिक्षित होकर न केवल अपने परिवार के स्तर को ऊँचा उठाया है, बल्कि समाज को भी एक नई पहचान दी है। इतना सब होने पर भी भारतीय नारी ने अपनी मर्यादाओं और ज़िम्मेदारियों को पहचाना है। वह माता, बहन, पत्नी और एक पुत्री के सभी कर्तव्यों का पालन कर रही है।


भारतीय नारी को एक ओर जहाँ स्वतंत्रता और पहचान प्राप्त हुई है, वहीं उसकी समस्याएँ भी बढ़ गई हैं। कई बार वह अपनी समस्याओं और दायित्वों के बीच दबकर रह जाती है, किंतु प्रायः देखा जाता है कि उनका हल भी वह स्वयं ही ढूँढ लेती है।


आज हम देख रहे हैं कि भारतीय नारी की यह स्वतंत्रता पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित हो गई है। पश्चिमी सभ्यता का अंधानुकरण कर वह अपनी संस्कृति और आदर्शों को भूल रही है। पैसा कमाने की होड़ में नैतिक मूल्यों से समझौता कर रही है। अतः आज आवश्यकता इस बात की है कि वह अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग न करे और नारीत्व के स्वाभाविक गुणों को अपनाए। ऐसा करने पर निश्चय ही नारी समाज में अपना सम्माननीय पद बनाए रखेगी और जयशंकर प्रसाद जी की ये पंक्तियाँ सदा के लिए सार्थक रहेंगी: 


 नारी! तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग, पग, तल में। 

पीयूष स्रोत-सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।। 

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