Header Ads Widget

Fashion

स्त्री शिक्षा

 स्त्री शिक्षा



रूपरेखा:-1. प्रस्तावना, 2. समाज में स्त्रियों का स्थान, 3. स्त्री शिक्षा की आवश्यकता, 4. स्त्री शिक्षा से लाभ, 5. शिक्षित स्त्रियों के उदाहरण, 6. स्त्री शिक्षा से हानियाँ और 7. उपसंहार।


प्रस्तावना:- मनु ने कहा है कि जहाँ स्त्रियों का आदर होता है वहाँ देवता बसते हैं। पहले उनका आदर होता था।आज भी किसी का नाम रखते समय पहले स्त्री का ही नाम आता है। जैसे- सीताराम राधाकृष्ण, उमाशंकर, गिरिजाशंकर, लक्ष्मीशंकर, सरस्वतीचंद्र आदि। स्त्री-पुरुष शब्द में भी पहले स्त्री शब्द ही आता है। पुरुष-स्त्रियों की भीड़ नहीं कहा जाता स्त्री पुरुषों की भीड़ ही कहा जाता है।


समाज में स्त्रियों का स्थान:- स्त्री और पुरुष गृहस्थ रूपी गाड़ी के दो पहिये हैं। इन में किसी एक का भी कमजोर होना ठीक नहीं है। वे एक दूसरे के पूरक होते हैं। इसीलिए तो धार्मिक ग्रंथों में उनको अर्धागिनी माना गया है और कोई भी धार्मिक कार्य स्त्री के बिना संपन्न नहीं होता। इस तरह वह गृहस्वामिनी मानी जाती थी। किन्तु बाद में ऐसा समय आया कि वह घर की दासी या खिलौना मानी जाने लगी और उसे भोग की वस्तु बनाकर छोड़ दिया और उसको शिक्षित करना पाप समझा गया। वास्तव में समाज में स्त्रियों का स्थान आकाश में सूर्य और चन्द्र के समान होना चाहिए। पर असलियत वह नहीं है। समाज को शिक्षित स्त्रियों की उतनी ही आवश्यकता है जितनी की शिक्षित पुरुषों की।


स्त्री शिक्षा की आवश्यकता:मनुष्य के जीवन में सबसे आवश्यक वस्तु है स्वास्थ्य। परिवार के सदस्यों को स्वस्थ रखने की सारी जिम्मेदारी स्त्री पर ही है। अशिक्षित स्त्री स्वास्थ्य की रक्षा नहीं कर सकती। दूसरे, बच्चे के लिए माँ ही सबसे पहला गुरु होती है। एक शिक्षित माता सौ शिक्षकों के उत्तरदायित्व को संभालने की सामर्थ्य रखती है। बालक को कल का नागरिक बनाना स्त्री का ही काम है। वही बच्चों में अच्छे गुण पैदा करती है। शिवाजी अपनी माता के कारण ही वीर राजा बने। गांधीजी के सत्य अहिंसा के पीछे उनकी माँ का धार्मिक रूप ही था। स्त्री चाहे तो अपने ভয় को राम की तरह पुरुषोत्तम बना सकती है या नीच बना सकती है। अत: बच्चों को अच्छी बातें सिखाने के लिए स्त्री का शिक्षित होना आवश्यक है। अशिक्षित स्त्री से समाज को कोई लाभ नहीं है।


स्त्री शिक्षा से लाभ :- शिक्षित स्त्री अपनी रक्षा आप कर सकती है। विधवा स्त्री शिक्षित होने पर स्वयं अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है। वह दूसरों के लिए बोझ नहीं बनेगी। वह अपने और परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य की देखभाल कर सकती हैं।


शिक्षित स्त्री अपने लिए ही नहीं दूसरों के लिए भी बहुत कुछ कर सकती है। गाँव के अनपढ़ लोगों को सफाई का महत्व समझाकर उनको स्वास्थ्य की शिक्षा दे सकती है। शिक्षित स्त्रियाँ संस्थाएं बनाती हैं। और समाज में होनेवाले अत्याचारों को दूर करने का प्रयत्न करती हैं।


शिक्षित स्त्रियों के उदाहरण :- समय-समय पर शिक्षित स्त्रियों ने महान काम करके दिखाये हैं। हाल में ही श्रीमती इंदिरा गांधी ने प्रधान मंत्री के रूप में भारत की इतनी सेवा और उन्नति की कि संसार में भारत का नाम ऊँचा हो गया। वे अपनी जान देकर भी लोगों को एकता का पाठ पढ़ा गईं। मीरा, महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान, रानी लक्ष्मी बाई, सरोजिनी नायुड, विजय लक्ष्मी पंडित आदि कई नाम गिने जा सकते हैं।


स्त्री शिक्षा से हानियाँ:- स्त्री शिक्षा की सबसे बड़ी हानि यह है कि वे दिखावे कोही असली जीवन समझती हैं और अपने सौंदर्य को बढ़ाने के लिए कई बनावटी चीजों का प्रयोग करती हैं। इससे खर्च बढ़ जाता है और घर में अशांति हो जाती है। शिक्षा पाकर नम बनने के बदले वे घमंड करने लगती हैं। और अपने आप को पुरुष के बराबर समझती हैं। यही कारण है कि अकसर पढ़ी-लिखी स्त्रियों का पारिवारिक जीवन सुखी नहीं होता। वे अनपढ़ स्त्रियों को घृणा की दृष्टि से देखती हैं। शिक्षित होकर पुरुषों की तरह नौकरी करने के कारण अपने बच्चों को नौकरानी की देख रेख में छोड़ देती हैं। इससे बच्चों को माँ का प्यार नहीं मिलता। वे माँ के प्यार के लिए तरसते रह जाते हैं और बिगड़ जातं हैं।


उपसंहार:- दोष तो हर वस्तु में होते हैं। किन्तु हमें दोष न देखकर गुण अपनाने चाहिए। तुलसी ने कहा है


“जड़ चेतन गुन-दोषमय, विश्व कीन्ह करतार


संत हंस गुन गहहिं पय, परिहरि वारि विकार।"


अत: स्त्रियों को चाहिए वे शिक्षा पद्धति पर दोष न मढ़कर अपनी भलाई की अच्छी-अच्छी बातें सीखें। किन्तु उनको शिक्षा अवश्य पानी चाहिए। क्योंकि तभी वे भारत के संस्कारों को बनाये रख सकती हैं। इस तरह भारत की नारी को भारत की नारी ही बनकर रहने का प्रयत्न करना चाहिए।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ