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मेरी प्रिय पुस्तक रामचरितमानस

 मेरी प्रिय पुस्तक. रामचरितमानस



- रूपरेखा 1. प्रस्तावना, 2. परिचय और लोक-प्रियता, 3. मानस की विशेषता, 4. मानस की महिमा, 5. प्रभाव और लाभ, 6. मानस में शिक्षा और 7. उपसंहार।


प्रस्तावना:- आज पुस्तकों का युग है। हर विषय के बारे में सैकड़ों पुस्तकें मिलती हैं। किन्तु अगर किसी पुस्तक ने भारतीय जन-जीवन को सबसे अधिक प्रभावित किया है, और जिसने बुरे रास्ते पर जानेवालों को बचाकर सही रास्ते पर चलाया है तो वह है तुलसी रामायण जिस का पूरा नाम है रामचरितमानस"। इसने भारतीय जनता की, नीति की, मर्यादा और संस्कृति की रक्षा की है, इस में आदर्श गृहस्थ जीवन का भी वर्णन हुआ है। 


परिचय और लोक-प्रियता मानस" में भगवान राम की पूरी कहानी है। श्रीराम के चरित्र को हमारेमानस में- हमारे मन में बिठानेवाली है यह पुस्तक। इसीलिए इसका नाम "रामचरितमानस" पड़ा। यह अवधी भाषा में लिखी गई है। 



उत्तर भारत में महल से लेकर झोंपड़ी तक पढ़े-बिनपढ़े, स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़े, विद्वान-मूर्ख, अमीर-गरीब सब इसको पढ़ते हैं। करोड़ों जनता में इसका सबसे अधिक मान है। मानस उन लोगों के जीवन का आधार है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में यह ग्रंथ इतनी गहराई से समाया हुआ है कि सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी इसकी एक न एक चौपाई कह ही देगा। वहाँ रामायण पाठ की भी परिपाटी है। सबेरे या रात में लोग अकेले या समूह में इसका पाठ करते हैं। लाखों अनपढ़ देहाती भी इसे सुनकर और गा-गाकर मानस की चौपाइयों को कंठस्थ कर बैठे हैं और समय-समय पर दुहराते हैं। यह रामायण जन-समाज के लिए इतनी अनुकूल पड़ी है कि उनके वचनों को जनता कहावतों की तरह प्रयोग करती है।


मानस की विशेषता :- रामचरितमानस तुलसीदासजी का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है। भाषा, भाव, रस, प्रबंध-कल्पना तथा लोक-कल्पना की भावना - किसी भी दृष्टि से देखें यह अद्धितीय ग्रंथ है। काव्य की दृष्टि से इसमें शांति की संजीवनी है और नीति की दृष्टि से इसमें समाज को आदर्शपथ पर ले जाने का संकेत है। इस में सब प्रकार के व्यक्ति अपने अपने मन के अनुकूल समाधान पा लेते हैं। इसलिए यह सबकेलिए कण्ठ-हार है। मानस के कईऐसे अंश हैं जो हमारे हृदय की गहराईको छूते हैं और अनजाने में ही हमारी आँखों से आँसू बह निकलते हैं। इस तरह यह हमारे ही हृदय का काव्य है। महत्व की दृष्टि से मानस का स्थान हिन्दी साहित्य में सबसे ऊँचा है ही। भारतीय साहित्य में भी अद्वितीय ग्रंथ है और संसार के साहित्य में अपने ढंग का निराला ग्रंथ है। इसकेजोड़ का ऐसा सर्वांग सुंदर ग्रंथ शायद ही दूसरा हो।


मानस की महिमा:-मानस की महिमा अपरंपार है। मानस वेदों, पुराणों और स्मृतियों का सार है। उन सब के गूढ़-तत्त्व इस मानस में सरल ढंग से वर्णित हैं। इसमें ज्ञान, भक्ति और वैराग्य की निर्मल “त्रिवेणी” धारा बहती है। यह भक्तिमार्गका सर्वोत्तम धर्म-ग्रंथ है; जीवन का प्रकाश है और सबका उद्धार करनेवाला कल्याणकारी ग्रंथ है। यह जब से लिखी गयी तब से आज तक अनवरत रूप से (लगातार) “सुरसरि सम सब कर हित" करता आया है। इस अद्भुत ग्रंथ के अनंत गुणों को पूरी तरह से जानना अभी बाकी है। मानस को जानने का अर्थ यह है कि जानने योग्य सारी बातें जान ली गई हैं। श्रद्धालु लोग इसके हर एक पद्य को मंत्र के समान आदर देते हैं। हिंदुओं के धार्मिक सिद्धांतों और संस्कृति का सर्वोच्च चित्र जैसा रामायण में मिलता है वैसा और किसी ग्रंथ में शायद ही मिले। मानस हमारे लिए संजीवन अमृत है ।फ्रेंच लेखक शेटो ब्रांड ने तुलसी रामायण को मानव-मात्र की बाइबिल कहा है। यह असंख्य लोगों के जीवन का सर्वस्व है। परमहंस बाबा श्री राघवदास जी के शब्दों में मानस हमारे राष्ट्र की महानिधि है। उसमें वर्णित व्यक्ति हमारे जीवन में एक-रूप हो गये हैं। राम-सीता आदिचरित्रों सेसारा भारतीय जीवन हजारों वर्षोसेमंत्र से पवित्र किया हुआ-सा है। संसार के दूसरे महाकाव्यों के पात्र इस तरह लोक जीवन में घुले-मिले नहीं दिखाई देते। उत्तर भारत में इसका अखण्ड पाठ तो सामान्य बात है।


भक्ति और ज्ञान के परमतत्त्व का जितना सुंदर समन्वय (मेल) मानस में हुआ है उतना और कहीं नहीं हुआ है। तुलसीदासजी ने धर्म और अध्यात्म के ऊँचे-ऊँचे सिद्धांतों को सुंदर और सहज भाषा मं गाँव-गाँव में, घर-घर में इतना बिखेर दिया है कि कोई भी इससे लाभ उठाये बिना नहीं रह सकता। आदर्श राज्य के रूप में राम-राज्य की कल्पना इसी महान ग्रंथ की देन है।


प्रभाव और लाभ :- तुलसीदासजी के शब्दों में वह शक्ति है जो केवल भक्त और महात्माओं के शब्दों में ही हो सकती है। उन्होंने मानस को भक्तों के उद्गार के रूप में लिखा था। सच्चे भक्त के उद्गार होने के कारण ही उनके शब्दों में वह शक्ति है। तभी तो लोग इसे प्रेम से, भक्ति से और श्रद्धा से गाते हैं और संसारका बेड़ा पार करने में इसे सहायक मानते हैं।


मानस को पढ़ने से और उसकी कथाओं का मनन करने से स्वार्थत्याग, संयम चित्त की पवित्रता, सब के प्रति प्रेम, दूसरों के दुख को दूर करने में आत्म-त्याग की भावना, गुरुजनों की सेवा आदि सद्गुणों का गहरा प्रभाव पाठकों पर पड़ता है।


इसका पाठ करके इसके उपदेशों के अनुसार आचरण करने से तथा मानस में वर्णित भगवान की लीलाओं का कीर्तन करने से भगवत्प्रेम आसानी से पा सकते हैं।


मानस में शिक्षा:- मानस में हमें हर बात की शिक्षा मिलती है। मानस में पुत्र-धर्म, मित्र-धर्म, पतिव्रता-धर्म आदि सभी धर्मो की शिक्षा सरल ढंग से दी गई है। इसमें बताया गया है कि समाज की अच्छी व्यवस्था के लिए हर एक परिवार को संगठित रहना है। अछूत लोगों को राम से छुआकर समाज से छुआछूत की भावना को दूर करने का उपदेश दिया गया है। उसमें बताया गया है कि सभी धर्मो के मूलमें आचरण की शुद्धता होना चाहिए।


पिता और पुत्र, भाई-भाई, पति-पत्नी, राजा-प्रजा के कर्तव्य और इन सब के आपसी संबंधों की आदर्श शिक्षा मानस की तरह और कहीं नहीं मिलेगी। राजा के सामने आदर्श रखा है


"मुखिया मुख सों चाहिए, खान पान को एक। पालै पौसे सकल अंग, तुलसी सहित विवेक॥"


किन्तु सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण शिक्षा उनकी यह है कि हमें बुराई छोड़कर भलाई को अपनाना चाहिए


को ।


'जड़ चेतन गुन दोष मय, विश्व कीन्ह करतार। संत हंस गुन गहहिं पय, परिहरि वारि विकार॥"


उपसंहार-कालजयी (कालकोजीतनेवाला) मानसने हमारे हृदय में भक्ति, देशभक्ति और अन्य गुणों का इतना अधिक निर्माण किया है कि इस युग के और किसी ग्रंथ ने इसका आधा भी नहीं किया। मानस तो भक्ति-भाव का समुद्रही है। स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़े सब की धार्मिक प्यास को बुझाकर एक समान सांत्वना देनेवाले"मानस" के समान दूसरा ग्रंथ नहीं है। चारों ओर से निराशाओं से घिरे भारतीय जीवन में “मानस" के द्वारा आशा रूपी जीवन-रस का संचार सदियों से बराबर होता रहा है। इस तरह हम देखते हैं किसाहित्य, दर्शन, राजनीति, समाजशास्त्र, धर्म-आचरण आदि सभी दृष्टियों से यह ग्रंथ महान है। जीवन की ऐसी कोईदशा नहीं, कोई ऐसा विचार नहीं है जो इसमें न आया हो। यह ग्रंथ अपने आप में पूर्ण है। यह मानस हमारा राष्ट्रीय ग्रंथ है। जिस भाषा में रामचरितमानस जैसे ग्रंथ की रचना हुई हो वही देश की राष्ट्रभाषा बनने योग्य है। अत: मानस ही मेरी प्रिय पुस्तक है।

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