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महात्मा गांधी




रूपरेखा 1. प्रस्तावना, 2. जन्म और बचपन, 3. मुख्य घटनाएँ और जीवन में मोड़, 4. गांधीजी का आदर्श जीवन , 5. गांधीजी की सेवाएँ, 6. गांधीजी की विशेषताएँ, 7. गांधीजी के जीवन से शिक्षा, 8. गांधीजी की महानता और 9. उपसंहार।


प्रस्तावना:- "गीता” में श्रीकृष्ण ने कहा है कि “जब जब धर्म की हानि होती है, पाप और अत्याचार बढ़ जाते हैं, मैं युग युग में प्रकट होता हूँ।" हमारे देश में अलग-अलग युगों में महान पुरुषों ने जन्म लिया है। उन्हीं में एक हैं महात्मा गांधी । वे अपने कर्म से ही महात्मा हुए। कहा है- “जो नर करनी करे, तो नर से नारायण होय।" गांधीजी आदर्श जीवन बिताने के कारण हमारे लिए 'राम हैं और कर्ममय जीवन बिताने के कारण कृष्ण हैं।


जन्म और बचपन:- गांधीजी का जन्म2 अक्तूबर सन् 1869 को गुजरात में पोरबंदर गाँव में हुआ। पिता काबा गांधी थे और माता पुतली बाईथीं। माता साधु स्वभाव की थीं और पूजा-पाठ और उपवास करती थीं। माता के इस स्वभाव का गांधीजी पर बड़ा असर पड़ा। वे वैष्णव कुल में जन्म लेने के कारण बचपन से ही वे सत्य और अहिंसा के प्रेमी बन गये। पितृ भक्त श्रवणकुमार और सत्य हरिश्चन्द्र नाटक देखने के बाद उन्होंने माता-पिता की सेवा करने और सत्य बोलने की प्रतिज्ञा की। वे बचपन से ही संकोची स्वभाव के थे। उनकी शिक्षा अधिकतर राजकोट में हुई। 17 साल की उम्र में बैरिस्टर की शिक्षा पाने आप इंगलैंड गये। और सन् 1888 में बैरिस्टर बन गये।


मुख्य घटनाएँ और जीवन में मोड़ :- परिस्थितियाँ ही महापुरुषों को जन्म देती हैं। और परिस्थितियों के कारण ही गांधीजी भी महापुरुष बने। बैरिस्टर बनने के बाद भारत में वकालत करने लगे। तब एक मुकद्दमे के सिलसिले में आप को दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहाँ उनके साथ कई विचित्र घटनाएँ घटी। न्यायालय में पगड़ी उतारने से इनकार करने पर वे न्यायालय से बाहर निकाल दिये गये। रेल में प्रथम श्रेणी में यात्रा करते समय एक अंग्रेज ने उनको जबरदस्ती उतार दिया। अंग्रेज कोचवान ने उनको गाडी में न बिठाकर छत पर बैठने को कहा। विरोध करने पर पीटे गये। इस तरह दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के साथ किये जानेवाले अत्याचारों को देखकर दुखी हुए। उन अत्याचारों को दूर करने के लिए उन्होंने सत्याग्रह आंदोलन किया। लोगों को “ करो या मरो” मंत्र सिखाकर आजादी की लड़ाई लड़ी और देश को आज़ादी दिलाई। 


गांधीजी का आदर्श जीवन :- गांधीजी समाज सुधारक थे और राजनीतिज्ञ थे। वे सादा जीवन और उच्च विचार का आदर्श रखकर अपनी साधना के कारण महान पुरुष हुए। वे अपनी निडरता, सत्य वचन, अहिंसा, हरिजन-प्रेम आदिगुणों के कारण सारे संसार में महान माने गये और युगसृष्टा, महापुरुष, विश्व वंदनीय, राष्ट्रपिता, राष्ट्र-देवता आदि नामों से पुकारे गये।


गांधीजी की सेवाएँ :- गांधीजी ने भारत के सामाजिक जीवन को उन्नत करने के लिए हिन्दू-मुसलिम एकता, खादी का प्रचार, छुआछूत दूर करना, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, ग्रामोद्योगों की उन्नति – आदि अठारह रचनात्मक कार्यक्रम बनाये। इस तरह जीवन को सरल बनाया। अछूतों को'हरिजन' नाम देकर उनको अधिकार दिलाये। ईसाई धर्म को अपनाने जाने वाले नौ करोड़ लोगों की रक्षा करके उन्होंने हिन्दू जाति का उपकार किया। उन्होंने ग्राम-सुधार को अपना लक्ष्य बनाया। क्योंकि उनका विचार था कि भारत की आत्मा गाँवों में ही रहती है।


गांधीजी की विशेषताएं:- गांधीजी स्वभाव से नरम थे और मधुर भाषी थे। सदाचार गांधीजी के लिए प्राणप्रिय था। वे कभी निराश न होते थे। उनके छोटे से शरीर में महान आत्मबल छिपा था। उनकी जैसी सादगी, सच्चाई और अहिंसा और कहीं नहीं पा सकते। उनका संदेश सारे संसार के लिए था। इसीलिए विश्व बंधु' कहलाये। उनकी राजनीति मानवता पर टिकी हुई थी। उनका विश्वास था कि कोई भी अच्छा काम बुरेतरीके से नहीं हो सकता। वे आत्मशक्ति पर विश्वास रखते थे और बुराई को भी भलाई से ही जीतना चाहते थे। उनका अहिंसा-संग्राम विश्व में अनूठा, अपूर्व और अद्वितीय है।


गांधीजी के जीवन से शिक्षा:- गांधीजी के स्वराज्य की कल्पना राम राज्य' के आदर्श पर आधारित थी जिसमें ऊँच-नीच का भेद न हो, धर्म और जाति की बात को लेकर कोई बड़ा या छोटा न हो। इस तरह उन्होंने प्रेम और शांति का पाठ सिखाया था। सत्य और अहिंसा जैसे मानवीय, सभ्य और संस्कृत हथियारों से समाज को समन्वय का रास्ता दिखाया। गांधीजी ने मानव को मानवता का पाठ पढ़ाकर उसे संकुचित मार्ग से हटाकर महान बनने का रास्ता बताया। उनका जीवन और व्यक्तित्व करोड़ों का पथ प्रदर्शन करता था। उनकी अमर ज्योति हर एक मानव के हृदय में पवित्र प्रकाश जगाती रहती है। उनके बताये रास्ते पर चलकर हम इस धरती को ही स्वर्ग बना सकते हैं।


गांधीजी की महानता :- गांधीजी का जीवन सत्य, अहिंसा और त्याग का आदर्श था। वे चरित्र को ही उत्तम मानते थे। वे जो कहते थे उसे स्वयं करके दिखाते थे। इस तरह मन वचन और कर्म की एकता ने ही उनको एक महान महात्मा बना दिया। वे सच्चे कर्मयोगी थे। हमेशा अपनी अन्तरात्मा के अनुसार ही काम करते थे। मानव सेवा को ही वे सच्चा धर्म मानते थे। सारा संसार उनको प्रिय थे। “वसुधैव कुटुंबकम्" की भावना उनमें पूर्णरूप में मिलती है। उन्होंने हमें जो आज़ादी दिलाई वह उनकी ऐसी जीत है जिसकी समता महात्मा बुद्ध और ईसा मसीहा से ही की जा सकती है। उनका जीवन “सत्यं शिवं सुदरं" था। वे सदा सत्य का पक्ष लेते थे, उनका काम करने का ढंग शिवं था, और इसी कारण उनका जीवन सुंदर था। सत्य और अहिंसा उनकी दो आँखें थीं। उनकी अहिंसा के बारे में श्रीमती सुभद्राकुमारी चौहान लिखती हैं


'बह चली तोप, गल गये टैंक, बंदूकें पिघल जाती हैं। सुन पावन मंत्र अहिंसा का अपने में आप समाती है। है हँसी खेल तुमको बापू लोहे को पानी कर देना ॥" 66


उपसंहार:- संसार में जो भी आता है उसे एक न एकदिन जाना ही पड़ता है। साधारण मनुष्य के मरने पर उसके रिश्तेदार और उसके दोस्त ही रोते हैं। पर गांधीजी की मृत्युपर सारा संसाररोया। देश-विदेश के राजा-महाराजा, मंत्रीनेता, स्त्री, पुरुष, बच्चे, यहाँ तक साधु, संत सब रोये । उनको खोकर संसार दरिद्र बन गया। इतना ही कह सकते हैं


"पूर्ण पुरुष, विकसित मानव, तुम जीवन सिद्ध अहिंसक। मुक्त हुए, तुम मुक्त हुए, जन जग वंद्य महात्मन् ॥"

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